अच्छा एक बात बताओ? हम अपने बच्चों को शिक्षा क्यों देना चाहते हैं? और शिक्षा देना कैसी चाहते हैं? मुझे लगता है कि हम चाहते हैं कि हमारा बच्चा पढ़-लिखकर एक सरकारी नौकरी पा ले, तो हम गंगा नहा जाएँ और अगर बुढ़ापे में हमारी सेवा भी करे तो सोने पे सुहागा। बस इतना हो जाए तो हम भी सफल और हमारे बच्चे भी। लेकिन अगर हम इस हिसाब से देखें तो महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, सचिन तेंदुलकर, प्रवीन कुमार, आपके जनपद के ही कबड्डी ख्लिाड़ी राहुल चैधरी आदि तो असफल व्यक्ति हैं, क्योंकि इनके पास नौकरी नहीं है। लेकिन नौकरी न होते हुए भी ये सफलता के शिखर पर हैं। हमें बच्चों के दूसरे गुणों को भी पहचानकर उन्हें निखारना होगा।
आज इस प्रतियोगिता के युग में हमारा जीवन भी परीक्षा बनकर रह गया है, जिसमें हमें प्रत्येक पल, हर कदम पर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कभी-कभी मैं सोचती हूँ कि जब हमारे दादा-दादी, नाना-नानी पढ़ते थे, तब उनके पास केवल और केवल एक लक्ष्य होता था और वह था शिक्षा प्राप्त करना। फिर हमारे माता-पिता का नंबर आया तो उनके सामने भी शिक्षा प्राप्त करने का अपना लक्ष्य साफ था कि हमें शिक्षा प्राप्त कर एक अच्छी नौकरी पानी है या फिर समाज में सम्मान। फिर हमारा नंबर आया तो हमें भी माता-पिता ने एक लक्ष्य निर्धारित करा दिया कि तुम्हें डाॅक्टर, इंजीनियर, आई0ए0एस0 या फिर आई0पी0एस0 बनना है और हम भी कुछ हद तक सफल रहे और अब हमारे बच्चों का नंबर है। उनके पास अनेक संसाधन तथा रास्ते हैं जिनके द्वारा वे सफलता प्राप्त कर सकते हैं। उनके पास चुनाव के लिए बहुत कुछ है और इस अधिकता के कारण ही वे आज कन्फ्यूज़ हो रहे हैं, उनका लक्ष्य स्पष्ट नहीं है। उनके जीवन में प्रत्येक स्थान पर क्वेश्चन मार्क लगा है। क्यों? क्योंकि आज हम विकास के पथ पर चल नहीं, बल्कि दौड़ रहे हैं। प्रत्येक क्षेत्र में नित नए परिवर्तन हो रहे हैं। हमने अपना लाइफ स्टाइल तो बदल लिया, लेकिन अपनी सोच को नहीं बदला और ना ही सफलता प्राप्त करने के प्लान में कोई परिवर्तन किया। हम आज भी अपने बच्चे की शिक्षा को केवल और केवल उनके अंकों से मापते हैं। उसने अंकों के साथ-साथ और क्या-क्या अचीव किया इस पर तो विचार ही नहीं करते। आज हम अपने बच्चों के लक्ष्य निर्धारण पर, उसके अचीवमेंट्स पर इतना फोकस नहीं करते, जितना प्रसैंटेज पर करते हैं। मैं ये नहीं कहती कि प्रसैंटेज कोई मायने नहीं रखती लेकिन हमें अपने बच्चे की क्षमताओं के अनुसार उसके भविष्य का निर्माण करना होगा। वो ज़माना गया जब कहते थे कि ‘पढ़ेगा-लिखेगा बनेगा नवाब, खेलेगा-कूदेगा बनेगा खराब‘ आज तो खेल के क्षेत्र में भी भविष्य का निर्माण किया जा सकता है। आज हमारे सामने सफलता प्राप्त करने के अनेक रास्ते हैं, बस आवश्यकता है तो सही स्ट्रैटज़ी के साथ बच्चों के सपनों को ध्यान में रखते हुए, माता-पिता, शिक्षक और बच्चांे को संयुक्त प्रयास करने की। और हमारा यही लक्ष्य है कि हम बच्चों को वह शिक्षा प्रदान करें, जो उनके व्यावहारिक ज्ञान में वृद्धि कर उनके सपनों को मूर्त रूप प्रदान करने में सक्षम हो। हमारा उद्देश्य है कि बच्चों का चहुँमुखी विकास हो, जिससे वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सके। और इसके कुछ उदाहरण हमारे स्कूल में प्रस्तुत भी हैं जिनमें मान्या, रिद्धिमा, यश, आदित्य, मीनल, संजली, सादए आरिका आदि अनेक नाम हैं। और कहते हैं ना कि जब अच्छा वातावरण और सही मार्गदर्शन मिलता है तो कमजोर और अल्पज्ञ भी सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ने लगता है। शिक्षा मानव जीवन का आधार है और हम उस आधार को इतना मजबूत बनाना चाहते हैं, जिस पर हम बच्चों के सुनहरे सपनों की नीव स्थापित कर सकें। उन सपनों को स्थायित्व प्रदान कर सकें। और इसी के लिए हम भी नित नवीन टैक्नोलाॅजी का प्रयोग कर रहें हैं। हम बच्चों को ऐसी शिक्षा प्रदान करना चाहते हैं, जो सभ्यता, संस्कृति तथा विज्ञान का मिश्रण हो। हमारा बच्चा संस्कारों के साथ माडर्न रहते हुए विकास के पथ पर अग्रसर हो। यही हमारी इच्छा तथा उद्देश्य है।
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