रविवार, 26 मार्च 2023

धर्म किसे कहते हैं?

 

धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः।

तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्।।

मनुस्मृति में कहा गया है-जो पुरुष धर्म का नाष करता है, उसी का नाष धर्म कर देता है और जो धर्म की रक्षा करता है, उसकी धर्म भी रक्षा करता है। इसलिए मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले, इस भय से धर्म का हनन अर्थात् त्याग कभी नहीं करना चाहिए।

       अब हमारे समक्ष यह प्रष्न उठता है कि ‘धर्म क्या है?‘ क्योंकि वर्तमान समय में राजनीति ने धर्म को यक्ष प्रष्न बना दिया है, जिसका उत्तर जो कोई भी देने का प्रयास करता है, स्वयं को खो देता है। परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि इस प्रष्न का उत्तर है ही नहीं। धर्म कोई पंथ या संप्रदाय नहीं है, बल्कि जीवन जीने की कला है। वेद, पुराण, उपनिषद आदि अनेक ग्रंथ धर्म की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि ‘धारयति इति धर्मः‘ अर्थात् जो धारण करने योग्य है, वही धर्म है। अब प्रष्न यह है कि धारण क्या किया जाए? तो मानव धर्म के दस लक्षण बताए गए हैं-

धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।

धीर्विद्या सत्यमक्रोधो, दषकं धर्मलक्षणम्।।

धैर्य, क्षमा, दम (अपनी वासनाओं पर नियंत्रण), अस्तेय (चोरी न करना), शौच (अंतरंग और बाह्य शुचिता), इन्द्रिय निग्रह (इंद्रियों को वष में रखना), धी (बुद्धिमत्ता का प्रयोग), विद्या (अधिक से अधिक ज्ञान पिपासा), सत्य (मन, वचन और कर्म से सत्य पालन) और अक्रोध (क्रोध न करना) ।

वर्तमान समय में हमें धर्म, जाति, पंथ और संप्रदाय के नाम पर बाँटने वाले लोगों और दलों से सावधान रहते हुए, धर्म के मर्म को समझने और जीवन में उसे धारण करने की जरुरत है, तभी देष, समाज और राष्ट्र सषक्त हो सकेगा। बस हमें धर्म की कसौटी पर खरा उतरना होगा-‘जो अपने अनुकूल न हो वैसा व्यवहार दूसरों के साथ नहीं करना चाहिए।‘ यही धर्म की कसौटी है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें