‘विकास: 'कंकरीट के जंगल’
प्रकृति हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है। सदियों से अनेक विद्वान इसकी महिमा
का गुणगान करते आए हैं। परंतु मेरी मित्र ने पुरजोर 'कंकरीट के जंगल को सभ्यता एवं विकास का प्रतीक बताया है।
निर्णायक मंडल, कृपया ध्यान दीजिएगा। यह विकास आखिर किस शर्त
पर? शुद्ध हवा के स्थान पर दूषित हवा पाकर, चिड़ियों की चहचहाहट के स्थान पर कानफोडू ट्रैफिक
सुनकर, सूर्योदय व सूर्यास्त देखने के स्थान पर टीवी
देखकर? आखिर कहाँ है विकास?
महोदया, मेरी मित्र ने शहरीकरण को ही विकास का दूसरा
नाम दिया है तो मैं उनसे कहना चाहूँगी कि इस भारत वर्ष के गौरवशाली इतिहास पर भी नज़र
डालें, क्या इस शहरीकरण से पहले मेरा भारत सोने की
चिड़िया और विश्वगुरु नहीं था? क्या सभ्यताओं में सबसे विकसित सभ्यता हमारी
नहीं थी? क्या शिक्षा और तकनीकी का ज्ञान प्राप्त करने दूर
देशों से लोग भारत नहीं आते थे?
मेरी मित्र शहरी सामाजिक संरचना को उत्तम बता रहीं है? मैं पूछना चाहती हूँ कि वे किस शहरी समाज को
परोपकारी और मिलनसार बता रहीं हैं? उसे जिसमें लोग
अपने पड़ौसी को जानते तक नहीं? उसे जिसमें लोग
छोटे-छोटे मकानों में एकाकीपन, तनाव व अवसाद जैसी
विभिन्न मानसिक बीमारियों से ग्रस्त हैं।
आज हमारे पास चिकित्सा सुविधा तो अच्छी है पर क्या हमारी जीवन रेखा छोटी नहीं
हो गयी है। आज शिक्षा के बड़े-बड़े संस्थान तो हमारे पास है पर क्या मानवीय मूल्यो का
ह्रास नहीं हुआ है? विज्ञान तो आगे बढ़ गया पर आज मानवता कितनी पीछे छूट चुकी है,
यह किसी से छिपा नहीं है।
मेरी मित्र अपनेपन को छोड़कर समाज से अलग- थलग रहकर किस प्रकार का आनंद इस कंकरीट
के जंगल में उठा रही है? कंकरीट के जंगल की
गगन छूती बड़ी- बड़ी इमारते तथा फ्लेटों में जीवन बिताकर किस प्रकार का गर्व का अनुभव
कर रही हैं? यह विचारणीय विषय है।
हरे-भरे खेत, लहलहाती फसलें,
रंगबिरंगे फूलों की सुंदर पोशाक में सजी धरती मनमोहक व आकर्षक लगती है। लहराती नदियाँ, मधुर संगीत सुनाते झरने, शीतल बहती हवा हमारे जीवन में उर्जा का संचार करते है। प्रकृति
का यह रूप हमारे जीवन के तनाव को दूर कर जीने की इच्छा को बढ़ाता है।
क्या इन्हें रंग-बिरंगी तितलिया, फूलों पर मँडराते भौरे, पेडो पर
कूकती कोयल, हरि-भरी घास पर नाचते मोरों को देखने का सौभाग्य
प्राप्त होगा? क्या मेरी प्रतिपक्षी ने सुना नहीं कि कई बार लिफ्ट
में फंसे बच्चे, लापरवाही से लगी आग,
समाज से कटे परिवार किस प्रकार तनाव ग्रस्त हो जाते
हैं।
अतीत में हमारे पूर्वजों ने प्रकृति
की गोद में रहकर ही साहित्य, संस्कृति, कृषि, कला, वास्तुकला, विज्ञान आदि के क्षेत्रों में नया इतिहास नहीं लिखा।
धन्यवाद
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें