मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और वह समाज
में मिल-जुलकर एक परिवार के रूप में रहता है। परिवार स्त्री व पुरुषों का वह समूह
होता है जिसमें बालक, युवा व वृद्ध सभी सम्मिलित होकर अपने-अपने
कर्तव्यों का पालन करते हैं। स्त्री व
पुरुष परिवार रूपी गाड़ी के दो पहिये हैं, जिनपर परिवार का भार बराबर-बराबर मात्रा में बँटा होता है, यदि इस गाड़ी का एक भी पहिया कमजोर या कार्य करना बंद कर दे तो सामाजिक
ढाँचा चरमराकर टूट जाएगा। वर्तमान समय में जैसे-जैसे
हम विकास के मार्ग पर आगे बढ्ते जा रहे हैं, वैसे-वैसे प्राकृतिक
संसाधनों का अभाव हमारे जीवन को और अधिक मुश्किल कर रहा है। इन परिस्थितियों में
लोग पहले बालक के रूप में लड़के को वरीयता देते हैं। तकनीक का प्रयोग कर लिंग परीक्षण
द्वारा लडकी होने पर गर्भ में ही उसे मार डालते हैं। कन्या भ्रूण हत्या आमतौर पर
मानवता और विशेष रूप से समूची स्त्री जाति के विरुद्ध सबसे जघन्य अपराध है। बेटे
की इच्छा परिवार नियोजन के
छोटे परिवार की संकल्पना के साथ जुडती है और दहेज़ की प्रथा ने ऐसी स्थिति को जन्म
दिया है जहाँ बेटी का जन्म किसी भी कीमत पर रोका जाता है। इसलिए समाज के अगुआ लोग
माँ के गर्भ में ही कन्या की हत्या करने का सबसे गंभीर अपराध करते हैं। भारतीय
संविधान का अनुच्छेद 21 “जीवन के अधिकार” की घोषणा करता है। अनुच्छेद 51A (e) महिलाओं के प्रति अपमानजनक प्रथाओं के त्याग की व्यवस्था भी करता है। उपरोक्त
दोनों घोषणाओं के आलोक में भारतीय संसद ने लिंग तय करने वाली तकनीक के दुरुपयोग और
इस्तेमाल से कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए जन्म-पूर्व परीक्षण तकनीक
(दुरुपयोग का नियमन और बचाव ) अधिनियम, 1994 भी पारित किया। परंतु केवल कानून बना देने से
सामाजिक बुराई का अंत नहीं हो सकता। महिलाओं के प्रति भेदभाव आम बात है और ख़ास तौर
पर कन्या के प्रति उपेक्षा हमारे समाज में गहरे जड़ों तक धंसी है। तमाम कानूनों के
बावजूद समाज में पुरुषों की श्रेष्ठता की गलत अवधारणा समाज के लिए खतरनाक है। लोगों का मानना
है कि लड़के परिवार के वंश को जारी रखते हैं जबकि वो ये बेहद आसान सी बात नहीं
समझते कि दुनिया में लड़कियाँ ही शिशु को जन्म दे सकती हैं, लड़के नहीं। भारतीय
समाज में कन्या भ्रूण हत्या के निम्न कारण हैं-
·
कन्या भ्रूण हत्या की मुख्य वजह बालिका शिशु पर बालक शिशु की प्राथमिकता है क्योंकि
पुत्र आय का मुख्य स्त्रोत होता है जबकि लड़कियां केवल उपभोक्ता के रुप में होती हैं।
समाज में ये गलतफहमी है कि लड़के अपने अभिवावक की सेवा करते हैं जबकि लड़कियाँ पराया
धन होती है।
·
दहेज़ व्यवस्था की पुरानी प्रथा भारत में अभिवावकों के सामने एक बड़ी चुनौती है
जो लड़कियां पैदा होने से बचने का मुख्य कारण है।
- अभिवावक
मानते हैं कि पुत्र समाज में उनके नाम को आगे बढ़ायेंगे जबकि लड़कियां केवल
घर संभालने के लिये होती हैं।
- गैर-कानूनी
लिंग परीक्षण और बालिका शिशु की समाप्ति के लिये भारत में दूसरा बड़ा कारण
गर्भपात की कानूनी मान्यता है।
- तकनीकी
उन्नति ने भी कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा दिया है।
कन्या भ्रूण हत्या ने बुराइयों की एक श्रृंखला को जन्म दिया
है। पिछले तीन दशकों में बड़े पैमाने पर कन्या भ्रूण हत्या के कुप्रभाव गिरते
लिंगानुपात और विवाह योग्य लड़कों के लिए वधुओं की कमी के रूप में सामने आये हैं।
इसके अलावा जनसंख्या विज्ञानी आगाह करते हैं कि अगले बीस सालों में चूँकि विवाह
योग्य महिलाओं की संख्या में कमी आएगी इसलिए पुरुष कम उम्र की महिलाओं से विवाह
करेंगे जिससे जन्मदर में वृद्दि के कारण जनसंख्या वृद्धि के दर भी ऊँची हो जाएगी।
लड़कियों को अगवा करना भी इसी से जुडी एक समस्या है। अविवाहित पुरुषों की अधिक
तादाद वाले समाज के अपने खतरे हैं। यौनकर्मी के तौर पर अधिक महिलाओं का शोषण होने
की सम्भावना है। यौन शोषण और बलात्कार इसके स्वाभाविक परिणाम हैं। पिछले कुछ सालों
से यौन अपराधों का तेजी से बढता ग्राफ असमान छू रहा है जो लिंगानुपात के परिणामों
से जुड़ा है।
लोगों का मानना है कि लड़के परिवार के वंश को जारी रखते हैं
जबकि वो ये बेहद आसान सी बात नहीं समझते कि दुनिया में लड़कियाँ ही शिशु को जन्म
दे सकती हैं, लड़के नहीं।
महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव समानता के
सिद्धांत और मानवीय गरिमा के आदर का घोर उल्लंघन है। यह सरकार की जिम्मेदारी है कि
वह कानूनों में बदलाव या मौजूदा कानूनों, नियमों, परिपाटियों और प्रथाओं में
से जेंडर आधारित भेदभाव को ख़त्म करने के लिए उचित कदम उठाए। साथ ही लोगों को
जागरूक करने का बीडा भी सरकार के साथ-साथ समाज के अग्रणी लोगों को उठाना होगा ताकि
स्त्रियों को भी समाज में समान अधिकार मिल सकें।
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