‘सा विद्या या विमुक्तये‘ अर्थात् विद्या वह है, जो हमें मुक्ति प्रदान करती है। और मुक्ति किससे? अज्ञान से। और जब मनुष्य की अज्ञानता दूर हो जाती है, तब वह विकास करता है। तब उसका बौद्धिक, सामाजिक, तथा आर्थिक प्रत्येक प्रकार से विकास होता है। शिक्षा का उद्देश्य केवल पुस्तकीय ज्ञान के आधार पर अंक बटोरना नहीं है, बल्कि ज्ञान प्राप्त करना है, जिसके आधार पर वह समाज में अपना एक अलग स्थान बना सके। अपने व्यक्तित्व का निर्माण कर सके। और हमारा यही उद्देश्य है कि हम बच्चों को संस्कारयुक्त शिक्षा प्रदान करें, जिससे बच्चों का चहुँमुखी विकास हो और वे पुस्तकीय ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक ज्ञान भी प्राप्त कर सकें।
NAMO NAMAH नमो नमः
1.यह ब्लॉग साहित्य व समाज के संबंध में व्यावहारिक तथ्यों को प्रदर्शित करने के उद्देश्य से बनाया गया है | 2. कुछ मनोरंजक व ज्ञानवर्धक बातें भी यहाँ पर हैं | 3. मेरा सदैव प्रयास रहेगा कि मेरे द्वारा लिखे गए किसी भी लेख द्वारा किसी की भी भावनाएं आहत न हों | 4. आप सभी के आशीर्वाद और मार्गदर्शन का सदैव आकांक्षी हूँ |
सोमवार, 29 जुलाई 2024
kanya bhroon hatya
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और वह समाज
में मिल-जुलकर एक परिवार के रूप में रहता है। परिवार स्त्री व पुरुषों का वह समूह
होता है जिसमें बालक, युवा व वृद्ध सभी सम्मिलित होकर अपने-अपने
कर्तव्यों का पालन करते हैं। स्त्री व
पुरुष परिवार रूपी गाड़ी के दो पहिये हैं, जिनपर परिवार का भार बराबर-बराबर मात्रा में बँटा होता है, यदि इस गाड़ी का एक भी पहिया कमजोर या कार्य करना बंद कर दे तो सामाजिक
ढाँचा चरमराकर टूट जाएगा। वर्तमान समय में जैसे-जैसे
हम विकास के मार्ग पर आगे बढ्ते जा रहे हैं, वैसे-वैसे प्राकृतिक
संसाधनों का अभाव हमारे जीवन को और अधिक मुश्किल कर रहा है। इन परिस्थितियों में
लोग पहले बालक के रूप में लड़के को वरीयता देते हैं। तकनीक का प्रयोग कर लिंग परीक्षण
द्वारा लडकी होने पर गर्भ में ही उसे मार डालते हैं। कन्या भ्रूण हत्या आमतौर पर
मानवता और विशेष रूप से समूची स्त्री जाति के विरुद्ध सबसे जघन्य अपराध है। बेटे
की इच्छा परिवार नियोजन के
छोटे परिवार की संकल्पना के साथ जुडती है और दहेज़ की प्रथा ने ऐसी स्थिति को जन्म
दिया है जहाँ बेटी का जन्म किसी भी कीमत पर रोका जाता है। इसलिए समाज के अगुआ लोग
माँ के गर्भ में ही कन्या की हत्या करने का सबसे गंभीर अपराध करते हैं। भारतीय
संविधान का अनुच्छेद 21 “जीवन के अधिकार” की घोषणा करता है। अनुच्छेद 51A (e) महिलाओं के प्रति अपमानजनक प्रथाओं के त्याग की व्यवस्था भी करता है। उपरोक्त
दोनों घोषणाओं के आलोक में भारतीय संसद ने लिंग तय करने वाली तकनीक के दुरुपयोग और
इस्तेमाल से कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए जन्म-पूर्व परीक्षण तकनीक
(दुरुपयोग का नियमन और बचाव ) अधिनियम, 1994 भी पारित किया। परंतु केवल कानून बना देने से
सामाजिक बुराई का अंत नहीं हो सकता। महिलाओं के प्रति भेदभाव आम बात है और ख़ास तौर
पर कन्या के प्रति उपेक्षा हमारे समाज में गहरे जड़ों तक धंसी है। तमाम कानूनों के
बावजूद समाज में पुरुषों की श्रेष्ठता की गलत अवधारणा समाज के लिए खतरनाक है। लोगों का मानना
है कि लड़के परिवार के वंश को जारी रखते हैं जबकि वो ये बेहद आसान सी बात नहीं
समझते कि दुनिया में लड़कियाँ ही शिशु को जन्म दे सकती हैं, लड़के नहीं। भारतीय
समाज में कन्या भ्रूण हत्या के निम्न कारण हैं-
·
कन्या भ्रूण हत्या की मुख्य वजह बालिका शिशु पर बालक शिशु की प्राथमिकता है क्योंकि
पुत्र आय का मुख्य स्त्रोत होता है जबकि लड़कियां केवल उपभोक्ता के रुप में होती हैं।
समाज में ये गलतफहमी है कि लड़के अपने अभिवावक की सेवा करते हैं जबकि लड़कियाँ पराया
धन होती है।
·
दहेज़ व्यवस्था की पुरानी प्रथा भारत में अभिवावकों के सामने एक बड़ी चुनौती है
जो लड़कियां पैदा होने से बचने का मुख्य कारण है।
- अभिवावक
मानते हैं कि पुत्र समाज में उनके नाम को आगे बढ़ायेंगे जबकि लड़कियां केवल
घर संभालने के लिये होती हैं।
- गैर-कानूनी
लिंग परीक्षण और बालिका शिशु की समाप्ति के लिये भारत में दूसरा बड़ा कारण
गर्भपात की कानूनी मान्यता है।
- तकनीकी
उन्नति ने भी कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा दिया है।
कन्या भ्रूण हत्या ने बुराइयों की एक श्रृंखला को जन्म दिया
है। पिछले तीन दशकों में बड़े पैमाने पर कन्या भ्रूण हत्या के कुप्रभाव गिरते
लिंगानुपात और विवाह योग्य लड़कों के लिए वधुओं की कमी के रूप में सामने आये हैं।
इसके अलावा जनसंख्या विज्ञानी आगाह करते हैं कि अगले बीस सालों में चूँकि विवाह
योग्य महिलाओं की संख्या में कमी आएगी इसलिए पुरुष कम उम्र की महिलाओं से विवाह
करेंगे जिससे जन्मदर में वृद्दि के कारण जनसंख्या वृद्धि के दर भी ऊँची हो जाएगी।
लड़कियों को अगवा करना भी इसी से जुडी एक समस्या है। अविवाहित पुरुषों की अधिक
तादाद वाले समाज के अपने खतरे हैं। यौनकर्मी के तौर पर अधिक महिलाओं का शोषण होने
की सम्भावना है। यौन शोषण और बलात्कार इसके स्वाभाविक परिणाम हैं। पिछले कुछ सालों
से यौन अपराधों का तेजी से बढता ग्राफ असमान छू रहा है जो लिंगानुपात के परिणामों
से जुड़ा है।
लोगों का मानना है कि लड़के परिवार के वंश को जारी रखते हैं
जबकि वो ये बेहद आसान सी बात नहीं समझते कि दुनिया में लड़कियाँ ही शिशु को जन्म
दे सकती हैं, लड़के नहीं।
महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव समानता के
सिद्धांत और मानवीय गरिमा के आदर का घोर उल्लंघन है। यह सरकार की जिम्मेदारी है कि
वह कानूनों में बदलाव या मौजूदा कानूनों, नियमों, परिपाटियों और प्रथाओं में
से जेंडर आधारित भेदभाव को ख़त्म करने के लिए उचित कदम उठाए। साथ ही लोगों को
जागरूक करने का बीडा भी सरकार के साथ-साथ समाज के अग्रणी लोगों को उठाना होगा ताकि
स्त्रियों को भी समाज में समान अधिकार मिल सकें।
रविवार, 28 जुलाई 2024
विकास: कंक्रीट का जंगल
विकास: कांक्रीट का जंगल
“परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है।“ और हम जिस समाज में रहते है, वह निरंतर विकास और प्रगति की ओर बढ़ रहा है। कांक्रीट
के जंगल, यानी शहरीकरण और आधुनिक बुनियादी ढाँचे का विकास,
इस प्रगति का ही प्रतीक है।
मैं आपका ध्यान इस ओर विशेष रूप से आकर्षित
करना चाहती हूँ कि वर्तमान समय में कांक्रीट के जंगल ही विकास का आधार है। शहरो में
इमारतें, सड़के, पुल और अन्य बुनियादी ढाँचे बनाकर हम रोजगार के अनेक रास्ते खोलते हैं। यह न केवल निर्माण क्षेत्र में नौकरियाँ प्रदान
करते हैं, बल्कि व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी और अन्य
सेवाओं के लिए भी संभावनाओं के विभिन्न द्वार खोलते हैं।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज की संरचना एक-दूसरे के सहयोग पर टिकी होती है। तो
शहरीकरण इस सामाजिक परिभाषा को पूर्णतया परिभाषित करता है। आज
शहरों में लोग एक-दूसरे के साथ अपने संसाधनों को
प्रेम से बांटते हैं। साथ मिल नई तकनीक खोजकर अपना व दूसरो का जीवन आसान बनाते
हैं।
ध्यान दीजिएगा, ये विकास के मार्ग
ही आधुनिक जीवन की सुविधाएँ प्रदान करते हैं। शहरी क्षेत्रों में हमे शिक्षा,
स्वास्थ्य, मनोरंजन और अन्य मूलभूत सुविधाएँ आसानी से उपलब्ध होती हैं।
बड़े शहरों में उच्च शिक्षा के प्रतिष्ठान, सुपर स्पेशियलिटि
अस्पताल और अत्याधुनिक परिवहन सुविधाएँ होती हैं जो
ग्रामीण क्षेत्रों में दुर्लभ हैं।
इस बात से तो आप अनभिज्ञ नहीं होगे कि आज ये कंक्रीट के जंगल
ही तकनीकी और वैज्ञानिक उन्नति को बढ़ावा देते है। शहरों में बड़े- बड़े अनुसंधान
केंद्र, तकनीकी पार्क और उद्योग स्थापित होते हैं, जो नवाचार और
अनुसंधान को बढ़ावा देते हैं। यह वैज्ञानिक उन्नति हमारी जीवन शैली को बेहतर बनाती
है और हमें वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बनाए रखती है।
हमें यह भी समझना होगा कि कंक्रीट के जंगल
सामाजिक और सांस्कृतिक विकास के भी केंद्र होते हैं। शहरों में विभिन्न संस्कृतियों
और समुदायों के लोग एकसाथ रहते हैं जिससे सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा
मिलता है। यह विविधता हमें एक समृध्द और परिष्कृत समाज की ओर ले जाती है।
कांक्रीट के जंगल हमारे
देश और समाज के लिए अनिवार्य हैं। ये आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रगति के प्रमुख साधन है, जो हमें एक समृध्द्ध और विकसित भविष्य की ओर ले
जाते हैं।
विकास: 'कंकरीट के जंगल’ VIKAAS: CONCRETE KE JANGAL (LAABH)
‘विकास: 'कंकरीट के जंगल’
प्रकृति हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है। सदियों से अनेक विद्वान इसकी महिमा
का गुणगान करते आए हैं। परंतु मेरी मित्र ने पुरजोर 'कंकरीट के जंगल को सभ्यता एवं विकास का प्रतीक बताया है।
निर्णायक मंडल, कृपया ध्यान दीजिएगा। यह विकास आखिर किस शर्त
पर? शुद्ध हवा के स्थान पर दूषित हवा पाकर, चिड़ियों की चहचहाहट के स्थान पर कानफोडू ट्रैफिक
सुनकर, सूर्योदय व सूर्यास्त देखने के स्थान पर टीवी
देखकर? आखिर कहाँ है विकास?
महोदया, मेरी मित्र ने शहरीकरण को ही विकास का दूसरा
नाम दिया है तो मैं उनसे कहना चाहूँगी कि इस भारत वर्ष के गौरवशाली इतिहास पर भी नज़र
डालें, क्या इस शहरीकरण से पहले मेरा भारत सोने की
चिड़िया और विश्वगुरु नहीं था? क्या सभ्यताओं में सबसे विकसित सभ्यता हमारी
नहीं थी? क्या शिक्षा और तकनीकी का ज्ञान प्राप्त करने दूर
देशों से लोग भारत नहीं आते थे?
मेरी मित्र शहरी सामाजिक संरचना को उत्तम बता रहीं है? मैं पूछना चाहती हूँ कि वे किस शहरी समाज को
परोपकारी और मिलनसार बता रहीं हैं? उसे जिसमें लोग
अपने पड़ौसी को जानते तक नहीं? उसे जिसमें लोग
छोटे-छोटे मकानों में एकाकीपन, तनाव व अवसाद जैसी
विभिन्न मानसिक बीमारियों से ग्रस्त हैं।
आज हमारे पास चिकित्सा सुविधा तो अच्छी है पर क्या हमारी जीवन रेखा छोटी नहीं
हो गयी है। आज शिक्षा के बड़े-बड़े संस्थान तो हमारे पास है पर क्या मानवीय मूल्यो का
ह्रास नहीं हुआ है? विज्ञान तो आगे बढ़ गया पर आज मानवता कितनी पीछे छूट चुकी है,
यह किसी से छिपा नहीं है।
मेरी मित्र अपनेपन को छोड़कर समाज से अलग- थलग रहकर किस प्रकार का आनंद इस कंकरीट
के जंगल में उठा रही है? कंकरीट के जंगल की
गगन छूती बड़ी- बड़ी इमारते तथा फ्लेटों में जीवन बिताकर किस प्रकार का गर्व का अनुभव
कर रही हैं? यह विचारणीय विषय है।
हरे-भरे खेत, लहलहाती फसलें,
रंगबिरंगे फूलों की सुंदर पोशाक में सजी धरती मनमोहक व आकर्षक लगती है। लहराती नदियाँ, मधुर संगीत सुनाते झरने, शीतल बहती हवा हमारे जीवन में उर्जा का संचार करते है। प्रकृति
का यह रूप हमारे जीवन के तनाव को दूर कर जीने की इच्छा को बढ़ाता है।
क्या इन्हें रंग-बिरंगी तितलिया, फूलों पर मँडराते भौरे, पेडो पर
कूकती कोयल, हरि-भरी घास पर नाचते मोरों को देखने का सौभाग्य
प्राप्त होगा? क्या मेरी प्रतिपक्षी ने सुना नहीं कि कई बार लिफ्ट
में फंसे बच्चे, लापरवाही से लगी आग,
समाज से कटे परिवार किस प्रकार तनाव ग्रस्त हो जाते
हैं।
अतीत में हमारे पूर्वजों ने प्रकृति
की गोद में रहकर ही साहित्य, संस्कृति, कृषि, कला, वास्तुकला, विज्ञान आदि के क्षेत्रों में नया इतिहास नहीं लिखा।
धन्यवाद
बुधवार, 31 मई 2023
औपचारिक तथा अनौपचारिक पत्रों में अंतर,अनौपचारिक पत्र (Informal Letter), औपचारिक पत्र (Formal Letter),पत्र लेखन के प्रकार,पत्र लेखन के आवश्यक तत्व अथवा विशेषताएं,पत्र लेखन की उपयोगिता अथवा महत्व
पत्र लेखन का अर्थ- पत्र लेखन एक ऐसी
कला है, जिसके माध्यम से दो व्यक्ति या दो व्यापारी जो एक दुसरे से काफी
दूरी पर स्थित हो,
परस्पर एक दूसरे को विभिन्न कार्यों
अथवा सूचनाओं के लिए पत्र लिखते है। पत्र लेखन का कार्य पारिवारिक जीवन से लेकर
व्यापारिक जगत तक प्रयोग में लाया जाता है। पत्र लेखन का कार्य अत्यंत प्रभावशाली
होता है, क्योंकि इस साधन के द्वारा अनेकों लोगो से संपर्क स्थापित करने में
भी सुविधा रहती है।
पत्र लेखन की
उपयोगिता अथवा महत्व –
- आजकल दूर-दूर रहने वाले सगे संबंधियों व
व्यापारियों को आपस में एक दूसरे के साथ मेल जोल रखने एवं संबंध रखने की
आवश्यकता पड़ती है, इस कार्य में पत्र लेखन एक महत्वपूर्ण
भूमिका निभाता है।
- निजी अथवा व्यापारिक सूचनाओं को प्राप्त
करने तथा भेजने के लिए पत्र व्यवहार विषय कारगर है। प्रेम, क्रोध, जिज्ञासा, प्रार्थना, आदेश, निमंत्रण आदि अनेक भावों को व्यक्त करने के
लिए पत्र लेखन का सहारा लिया जाता है।
- पत्रों के माध्यम से संदेश भेजने में पत्र
में लिखित सूचना पूर्व रूप से गोपनीय रखी जाती है। पत्र को भेजने वाला तथा
पत्र प्राप्त करने वाले के आलावा किसी भी अन्य व्यक्ति को पत्र में लिखित संदेश
पड़ने का अधिकार नहीं होता है।
- मित्र, शिक्षक, छात्र, व्यापारी, प्रबंधक, ग्राहक व अन्य समस्त सामान्य व्यक्त्तियों
व विशेष व्यक्तियों से सूचना अथवा संदेश देने तथा लेने के लिए पत्र लेखन का
प्रयोग किया जाता है।
- वर्तमान व्यावसायिक क्षेत्र में ग्राहकों
को माल के प्रति संतुष्टि देने हेतु, व्यापार की ख्याति बढ़ाने हेतु, व्यवसाय का विकास करने हेतु इत्यादि अनेक कार्यों में पत्र
व्यवहार का विशेष महत्व है।
पत्र लेखन के
आवश्यक तत्व अथवा विशेषताएं-
पत्र लेखन से संबंधित अनेक महत्व
है परन्तु इन महत्व का लाभ तभी उठाया जा सकता है जब पत्र एक आदर्श पत्र की भांति
लिखा गया हो। पत्र में सम्मिलित निम्नलिखित तत्वों के कारण ही पत्र को एक
प्रभावशाली रूप दिया जा सकता है।
1.
भाषा- पत्र के अन्तर्गत भाषा एक
विशेष तत्व है। पत्र की भाषा शिष्ट व नर्म होनी चाहिए। क्योंकि नर्म एवं शिष्ट
पत्र ही पाठक को प्रभावित कर सकते हैं। कृपया, धन्यवाद जैसे आदि शब्दों का
प्रयोग करके पाठक के मन को सीधे पत्र लिखने की भावना का महसूस कराना चाहिए।
2.
संक्षिप्त- वर्तमान युग में
प्रतिएक व्यक्ति के लिए समय धन से कम मूल्यवान नहीं होता। इस कारण व्यर्थ के लंबे
पत्र लेखक व पाठक दोनों का अमूल्य समय व्यर्थ नष्ट करते है। मुख्य बातों को बिना
संकोच के लिखा जाना चाहिए। अनावश्यक रूप से लंबे शब्दों को लिखने का परित्याग किया
जाना चाहिए।
3.
स्वच्छता- पत्र की भाषा सरल व
स्पष्ट भी होनी चाहिए। साथ ही पत्र को साफ कागज पर अक्षरों का ध्यान रखते हुए साफ
साफ लिखना चाहिए। यदि पत्र टाईप किया हुआ हो तो उसमे कोई गलती या काट – पीट नहीं होनी चाहिए। क्योंकि यह
पाठक को अप्रिय लगती है तथा संशय भी उत्पन्न करती है।
4.
रूचिपूर्ण- पत्र में रोचकता के
बिना पाठक को प्रभावित नहीं किया का सकता, इसीलिए पाठक के स्वभाव व सम्मान
को ध्यान में रखकर पत्र को प्रारंभ करना चाहिए। पत्र में पाठक के सम्बन्ध में
प्रयोग होने वाले शब्दों आदरणीय, प्रिय, महोदय आदि शब्दों का प्रयोग करना
चाहिए।
5.
उद्देश्यपूर्ण- पत्र जिस
उद्देश्य के लिए लिखा जा रहा हो, उस उद्देश्य को ध्यान में रखकर
ही आवश्यक बातें पत्र के अन्तर्गत लिखनी चाहिए। पाठक का उद्देश्य पर ध्यान
केंद्रित करने के लिए पत्र का उद्देश्यूर्ण होना परम आवश्यक है।
पत्र लेखन के प्रकार
पत्रों को लिखने के निम्न दो
प्रकार होते है –
1.
औपचारिक पत्र (Formal Letter)
2.
अनौपचारिक पत्र (Informal Letter)
आइए पत्र लेखन के इन दोनों रूपों
की विस्तृत से जानकारी प्राप्त करते है।
1. औपचारिक पत्र (Formal Letter) – सरकारी तथा व्यावसायिक कार्यों
से संबंध रखने वाले पत्र औपचारिक पत्रों के अन्तर्गत आते है। इसके अतिरिक्त इन
पत्रों के अन्तर्गत निम्नलिखित पत्रों को भी शामिल किया जाता है।
- प्रार्थना पत्र
- निमंत्रण पत्र
- सरकारी पत्र
- गैर सरकारी पत्र
- व्यावसायिक पत्र
- किसी अधिकारी को पत्र
- नौकरी के लिए आवदेन हेतु
- संपादक के नाम पत्र इत्यादि।
औपचारिक पत्र का प्रारूप-
1.
औपचारिक पत्र लिखने की शुरुआत
बाईं ओर से की जाती है। सर्वप्रथम ‘सेवा में‘ शब्द लिखकर, पत्र पाने वाले का नाम लिखकर, पाने वाले के लिए उचित सम्बोधन
का प्रयोग किया जाता है। जैसे – श्री मान, मान्यवर, आदरणीय आदि।
2.
इसके बाद पत्र पर पत्र पाने वाले
का “पता/ कंपनी का नाम” लिखा जाता है।
3.
तत्पश्चात पत्र जिस उद्देश्य के
लिए लिखा जा रहा हो उसका “विषय” लिखा जाना आवश्यक है।
4.
विषय लिखने के बाद एक बार फिर
पत्र पाने वाले के लिए सम्बोधन शब्द का प्रयोग किया जाता है।
5.
सम्बोधन लिखे के बाद, पत्र के मुख्य विषय का विस्तृत
में वर्णन किया जाता है।
6.
मुख्य विषय का अंत करते समय
उत्तर कि प्रतीक्षा में, सधन्यवाद, शेष कुशल आदि का प्रयोग किया
जाना चाहिए।
7.
इसके बाद पत्र के अंतिम भाग में “भवदीय, आपका आभारी, आपका आज्ञाकारी” इत्यादि शब्द लिखे जाने चाहिए।
8.
पत्र भेजने वाले का “नाम/कंपनी का नाम, पता ,दिनांक” लिखते है।
9.
अंत में पत्र लिखने वाले के
हस्ताक्षर किए जाते है।
2. अनौपचारिक पत्र (Informal Letter)– इन पत्रों के अन्तर्गत उन पत्रों
को सम्मिलित किया जाता है, जो अपने प्रियजनों को, मित्रों को तथा सगे- संबंधियों
को लिखे जाते है। उदहारण के रूप में – पुत्र द्वारा पिता जी को अथवा
माता जी को लिखा गया पत्र, भाई-बंधुओ को लिखा जाना वाला, किसी मित्र की सहायता हेतु पत्र, बधाई पत्र, शोक पत्र, सुखद पत्र इत्यादि।
अनौपचारिक पत्र का
प्रारूप-
1) सबसे पहले बाई ओर पत्र भेजने वाले का “पता” लिखा जाता है।
2) प्रेषक के पते के नीचे “तिथि” लिखी जाती है।
3) भेजने वाले का केवल नाम नहीं
लिखा जाता है। यदि अपने से बड़ों को पत्र लिखा जा रहा है तो, “पूजनीय, आदरणीय, जैसे शब्दों के साथ उनसे संबंध
लिखते है। जैसे – पूजनीय पिता जी। यदि अपने से किसी छोटे या बराबर के व्यक्ति को पत्र
लिख रहे है तो उनके नाम के साथ प्रिय मित्र, बंधुवर इत्यादि शब्दों का प्रयोग
किया जाता है।
4) इसके बाद पत्र का मुख्य भाग दो
अनुच्छेदों में लिखा जाता है।
5) पत्र के मुख्य भाग की समाप्ति
धन्यवाद सहित लिखकर किया जाता है।
6) अंत में प्रार्थी, या तुम्हारा स्नेही आदि शब्दावली
का प्रयोग करके लेखक के हस्ताक्षर किए जाते है।
औपचारिक तथा अनौपचारिक पत्रों में
अंतर
औपचारिक
पत्र |
अनौपचारिक
पत्र |
1. औपचारिक पत्रों को सरकारी सूचनाओं तथा संदेशों के प्रेषण में
शामिल किया जाता है। |
1. अनौपचारिक पत्रों को परिवारिक, निजी सगे संबंधियों, मित्रों आदि को लिखा जाता है। |
2. अनौपचारिक पत्रों के अन्तर्गत शिष्ट भाषा का प्रयोग किया
जाता है। |
2. अनौपचारिक पत्रों के अन्तर्गत प्रेम, स्नेह, दया,
सहानुभूति आदि भावनाओं से परिपूर्ण
भाषा का प्रयोग किया जाता है। |
3. इन पत्रों का व्यापारिक जगत में विशेष महत्व होता है। |
3. अनौपचारिक पत्रों का व्यापारिक जगत में कोई उपयोग नहीं होता
है। |
4. औपचारिक पत्रों को लिखने का एक औपचारिक उद्देश्य होना आवश्यक
होता है। |
4. अनौपचारिक पत्रों को लिखने का कोई मुख्य उद्देश्य नहीं होता
है। |
5. औपचारिक पत्रों में मुख्य विषय को मुख्यता तीन अनुच्छेदों
में विभाजित किया जाता है। |
5. अनौपचारिक पत्रों के मुख्य विषय को अधिकतम दो अनुच्छेदों में
विभाजित किया जाता है। |
6. औपचारिक पत्रों को स्पष्टता से लिखा जाता है जिससे किसी
सूचना या कार्य में बाधा अथवा संशय उत्पन्न ना हो सके। |
6. अनौपचारिक पत्रों भावात्मक रूप से लिखे जाते है। |
अनौपचारिक पत्रों को लिखने के
उद्देश्य
1.
अनौपचारिक पत्रों को लिखने का
मुख्य उद्देश्य अपने परिवारजनों को, प्रियजनों को, सगे संबंधियों को, मित्रजनों आदि को निजी संदेश
भेजना है।
2.
किसी निजी जन को बधाई देने हेतु, शोक सूचना देने हेतु, विवाह, जन्मदिवस पर आमंत्रित करने हेतु, आदि के लिए इन्हीं पत्रों का
प्रयोग किया जाता है।
3.
हर्ष, दुःख, उत्साह, क्रोध, नाराज़गी, सलाह, सहानुभूति इत्यादि भावनाओं को
अनौपचारिक पत्र के माध्यम से व्यक्त करना।
4.
समस्त अनौपचारिक कार्यों के लिए
अनौपचारिक पत्रों का प्रयोग किया जाता है।
औपचारिक पत्रों को लिखने के लिए कौन-
कौन से तत्व आवश्यक है?
1.
मौलिकता- पत्र की भाषा पूर्ण
मौलिक होनी चाहिए। पत्र सदैव उद्देश्य के अनुरूप लिखा होना चाहिए।
2.
संक्षिप्तता – आधुनिक युग में समय अत्यंत कीमती
है। औपचारिक पत्र के लिए आवश्यक है कि मुख्य विषय को संक्षिप्त में परंतु पूर्ण
रूप से लिखा जाए।
3.
योजनाबद्ध- पत्र लिखने से पूर्व
पत्र के सबंध में योजना बनाना आवश्यक होता है। बिना योजना के पत्र का प्रारंभ व
अंत अनुकूल रूप से नहीं हो पाता है।
4.
पूर्णता- पत्र को लिखते समय समय
पूर्णता का ध्यान रखना भी जरूरी है। पत्र में समस्त बातें लिखने के बाद, महत्वपूर्ण दस्तावेजों को संलग्न
करना चाहिए। अतः संपूर्ण पत्र पर विचार मंथन कर ही पत्र लिखना प्रारंभ करना चाहिए।
5.
आकर्षक- पत्र को आकर्षक करने का
तत्व पाठक को अत्यंत प्रभावित करता है। पत्र पढ़ने व देखने में सुंदर व आकर्षक
होना चाहिए। पत्र अच्छे कागज पर सुंदर ढंग से टाइप किया जाना चाहिए।