सोमवार, 29 मई 2023

KHUSHI, ख़ुशी की समझ मेरे लिए, happiness, DHARM OR KHUSHI,

ख़ुशी की समझ मेरे लिए

इस संसार में प्रत्येक कार्य-व्यापार केवल और केवल ख़ुशी के लिए ही होता है| इसे पाने के लिए मनुष्य जन्म से मृत्यु पर्यंत प्रयास करता रहता है, परंतु यह ख़ुशी मृगतृष्णा की तरह और अधिक बढ़ती ही जाती है|

खुशी वास्तव में खुश और संतुष्ट होने की स्थिति है। कई दार्शनिकों ने इस विषय पर अलग-अलग विचार दिये हैं, हालांकि सबसे प्रभावशाली तथ्य यह है कि सुख को भीतर से महसूस किया जा सकता है और बाहरी दुनिया में इसकी खोज नहीं की जानी चाहिए। वास्तव में ख़ुशी कस्तूरी के समान होती है, जो मनुष्य के अन्दर ही होती है, परंतु मनुष्य अज्ञानी मृग के समान उसे सम्पूर्ण वन में ढूंढता रहता है | मनुष्य अपनी ख़ुशी के लिए दूसरों पर निर्भर रहता है, जो उसके दुःख का कारण बनता है | यदि भूख मुझे लगी है, तो भोजन भी मुझे ही ग्रहण करना पड़ेगा, तब ही क्षुधा शांत होगी | वैसे ही ख़ुशी मुझे चाहिए तो उसके लिए कर्म मुझे ही करना पड़ेगा| जब तक हम दूसरों से ख़ुशी की अपेक्षा करते रहेंगे, तब तक हमें उपेक्षा ही मिलेगी| जब हम ख़ुशी को परिभाषित करने का प्रयास करते हैं तो विभिन्न विद्वानों के मत भिन्न हैं| भारतीय दर्शन ख़ुशी को नैतिकता से जोड़कर देखता है, तो पाश्चात्य दार्शनिक अरस्तु ने माना कि इस संसार में ख़ुशी ही एकमात्र चीज है, जिसे मानव अपने लिए चाहता है| बौद्ध धर्म में ख़ुशी शिक्षाओं का केंद्रीय विषय है, वो कहता है कि तृष्णा पर विजय ही परम सुख है| पाश्चात्य संस्कृति केवल व्यक्तिगत ख़ुशी को ही वरीयता देती है, परंतु भारतीय संस्कृति की विशाल व तीक्ष्ण दृष्टि ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना स्वयं में संजोये दूसरों की ख़ुशी में ही मनुष्य की ख़ुशी का उपदेश देती है| कोई ख़ुशी को केवल धन से जोड़ता है, तो कोई स्वास्थ्य से| कोई प्रेम से, तो कोई दोस्ती से| कोई नौकरी से, तो कोई निश्चित इच्छा की पूर्ति को ख़ुशी मानता है| कुछ लोग पंच इंद्रियों की संतुष्टि को ख़ुशी का नाम देते हैं, तो कुछ का कहना है कि एक अच्छी भावना, आनंद या मित्रों व सगे-संबंधियों के साथ समय बिताना ही ख़ुशी है| सुखवाद तो ख़ुशी को मानव जीवन का एकमात्र लक्ष्य मानता है| परंतु मेरे अनुसार तो ख़ुशी इन सब क्षणिक अहसासों व भावनाओं से बहुत दूर की बात है| इन सब उपरोक्त बातों से मिलने वाली ख़ुशी तो नश्वर है| यह शारीरिक प्रक्रिया नहीं, जो कुछ हार्मोन्स परिवर्तन के कारण जनित हो| यह तो ईश्वर प्रदत्त वह अनुभूति है, जो शाश्वत है| लेकिन केवल तब ही यह शाश्वत होगी, जब यह बाह्य कारकों द्वारा उत्पन्न न होकर आंतरिक कारकों द्वारा उत्पन्न हो| मैं अक्सर देखता हूँ कि लोग अनेक छोटे-बड़े अवसरों पर स्वयं को खुश कहते, परंतु कुछ पलों बाद वही व्यक्ति स्वयं को संसार का सबसे दुखी मनुष्य बताने लगता है| और इसका कारण कोई छोटी सी घटना या किसी व्यक्ति द्वारा कुछ शब्द मात्र कह देना होता है| तो आखिर यह कैसी ख़ुशी है? जो कुछ मिनटों में ही समाप्त हों गई ? इसका सीधा सा यह अर्थ है कि शाश्वत ख़ुशी के लिए कारण भी शाश्वत चाहिए| क्षणिक कारण तो क्षणिक ख़ुशी ही प्रदान कर सकते है| अब प्रश्न यह उठता है कि शाश्वत कारण क्या है? मुझे तो प्रसन्नता के लिए केवल एक ही शाश्वत कारण दिखाई देता है-परोपकार| बिना किसी अपेक्षा के किया गया परोपकार| यह ही हमें सच्ची ख़ुशी प्रदान कर सकता है, जो शाश्वत होगी| जिसे कोई बाहरी कारण नष्ट नहीं कर सकेगा| मुझे लगता है, और अधिक ख़ुशी पाने का प्रयास ही हमें ख़ुशी से दूर रखता है| हमें ख़ुशी को पाने का नही, देने का प्रयास करना होगा, वो भी बिना किसी अपेक्षा के भाव के| तब देखना वह शाश्वत ख़ुशी प्राप्त होगी, जिसका वर्णन सभी धर्मं, संस्कृतियाँ, दार्शनिक व शास्त्र करते हैं| 

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