बुधवार, 31 मई 2023

औपचारिक तथा अनौपचारिक पत्रों में अंतर,अनौपचारिक पत्र (Informal Letter), औपचारिक पत्र (Formal Letter),पत्र लेखन के प्रकार,पत्र लेखन के आवश्यक तत्व अथवा विशेषताएं,पत्र लेखन की उपयोगिता अथवा महत्व

पत्र लेखन का अर्थ- पत्र लेखन एक ऐसी कला है, जिसके माध्यम से दो व्यक्ति या दो व्यापारी जो एक दुसरे से काफी दूरी पर स्थित हो, परस्पर एक दूसरे को विभिन्न कार्यों अथवा सूचनाओं के लिए पत्र लिखते है। पत्र लेखन का कार्य पारिवारिक जीवन से लेकर व्यापारिक जगत तक प्रयोग में लाया जाता है। पत्र लेखन का कार्य अत्यंत प्रभावशाली होता है, क्योंकि इस साधन के द्वारा अनेकों लोगो से संपर्क स्थापित करने में भी सुविधा रहती है।

पत्र लेखन की उपयोगिता अथवा महत्व

  • आजकल दूर-दूर रहने वाले सगे संबंधियों व व्यापारियों को आपस में एक दूसरे के साथ मेल जोल रखने एवं संबंध रखने की आवश्यकता पड़ती है, इस कार्य में पत्र लेखन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • निजी अथवा व्यापारिक सूचनाओं को प्राप्त करने तथा भेजने के लिए पत्र व्यवहार विषय कारगर है। प्रेम, क्रोध, जिज्ञासा, प्रार्थना, आदेश, निमंत्रण आदि अनेक भावों को व्यक्त करने के लिए पत्र लेखन का सहारा लिया जाता है।
  • पत्रों के माध्यम से संदेश भेजने में पत्र में लिखित सूचना पूर्व रूप से गोपनीय रखी जाती है। पत्र को भेजने वाला तथा पत्र प्राप्त करने वाले के आलावा किसी भी अन्य व्यक्ति को पत्र में लिखित संदेश पड़ने का अधिकार नहीं होता है।
  • मित्र, शिक्षक, छात्र, व्यापारी, प्रबंधक, ग्राहक व अन्य समस्त सामान्य व्यक्त्तियों व विशेष व्यक्तियों से सूचना अथवा संदेश देने तथा लेने के लिए पत्र लेखन का प्रयोग किया जाता है।
  • वर्तमान व्यावसायिक क्षेत्र में ग्राहकों को माल के प्रति संतुष्टि देने हेतु, व्यापार की ख्याति बढ़ाने हेतु, व्यवसाय का विकास करने हेतु इत्यादि अनेक कार्यों में पत्र व्यवहार का विशेष महत्व है।

पत्र लेखन के आवश्यक तत्व अथवा विशेषताएं-

पत्र लेखन से संबंधित अनेक महत्व है परन्तु इन महत्व का लाभ तभी उठाया जा सकता है जब पत्र एक आदर्श पत्र की भांति लिखा गया हो। पत्र में सम्मिलित निम्नलिखित तत्वों के कारण ही पत्र को एक प्रभावशाली रूप दिया जा सकता है।

1.     भाषा- पत्र के अन्तर्गत भाषा एक विशेष तत्व है। पत्र की भाषा शिष्ट व नर्म होनी चाहिए। क्योंकि नर्म एवं शिष्ट पत्र ही पाठक को प्रभावित कर सकते हैं। कृपया, धन्यवाद जैसे आदि शब्दों का प्रयोग करके पाठक के मन को सीधे पत्र लिखने की भावना का महसूस कराना चाहिए।

2.     संक्षिप्त- वर्तमान युग में प्रतिएक व्यक्ति के लिए समय धन से कम मूल्यवान नहीं होता। इस कारण व्यर्थ के लंबे पत्र लेखक व पाठक दोनों का अमूल्य समय व्यर्थ नष्ट करते है। मुख्य बातों को बिना संकोच के लिखा जाना चाहिए। अनावश्यक रूप से लंबे शब्दों को लिखने का परित्याग किया जाना चाहिए।

3.     स्वच्छता- पत्र की भाषा सरल व स्पष्ट भी होनी चाहिए। साथ ही पत्र को साफ कागज पर अक्षरों का ध्यान रखते हुए साफ साफ लिखना चाहिए। यदि पत्र टाईप किया हुआ हो तो उसमे कोई गलती या काट पीट नहीं होनी चाहिए। क्योंकि यह पाठक को अप्रिय लगती है तथा संशय भी उत्पन्न करती है।

4.     रूचिपूर्ण- पत्र में रोचकता के बिना पाठक को प्रभावित नहीं किया का सकता, इसीलिए पाठक के स्वभाव व सम्मान को ध्यान में रखकर पत्र को प्रारंभ करना चाहिए। पत्र में पाठक के सम्बन्ध में प्रयोग होने वाले शब्दों आदरणीय, प्रिय, महोदय आदि शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।

5.     उद्देश्यपूर्ण- पत्र जिस उद्देश्य के लिए लिखा जा रहा हो, उस उद्देश्य को ध्यान में रखकर ही आवश्यक बातें पत्र के अन्तर्गत लिखनी चाहिए। पाठक का उद्देश्य पर ध्यान केंद्रित करने के लिए पत्र का उद्देश्यूर्ण होना परम आवश्यक है।

पत्र लेखन के प्रकार

पत्रों को लिखने के निम्न दो प्रकार होते है

1.     औपचारिक पत्र (Formal Letter)

2.     अनौपचारिक पत्र (Informal Letter)

आइए पत्र लेखन के इन दोनों रूपों की विस्तृत से जानकारी प्राप्त करते है।

1. औपचारिक पत्र (Formal Letter) – सरकारी तथा व्यावसायिक कार्यों से संबंध रखने वाले पत्र औपचारिक पत्रों के अन्तर्गत आते है। इसके अतिरिक्त इन पत्रों के अन्तर्गत निम्नलिखित पत्रों को भी शामिल किया जाता है।

  • प्रार्थना पत्र
  • निमंत्रण पत्र
  • सरकारी पत्र
  • गैर सरकारी पत्र
  • व्यावसायिक पत्र
  • किसी अधिकारी को पत्र
  • नौकरी के लिए आवदेन हेतु
  • संपादक के नाम पत्र इत्यादि।

औपचारिक पत्र का प्रारूप-

1.     औपचारिक पत्र लिखने की शुरुआत बाईं ओर से की जाती है। सर्वप्रथम सेवा मेंशब्द लिखकर, पत्र पाने वाले का नाम लिखकर, पाने वाले के लिए उचित सम्बोधन का प्रयोग किया जाता है। जैसे – श्री मान, मान्यवर, आदरणीय आदि।

2.     इसके बाद पत्र पर पत्र पाने वाले का पता/ कंपनी का नामलिखा जाता है।

3.     तत्पश्चात पत्र जिस उद्देश्य के लिए लिखा जा रहा हो उसका विषय” लिखा जाना आवश्यक है।

4.     विषय लिखने के बाद एक बार फिर पत्र पाने वाले के लिए सम्बोधन शब्द का प्रयोग किया जाता है।

5.     सम्बोधन लिखे के बाद, पत्र के मुख्य विषय का विस्तृत में वर्णन किया जाता है।

6.     मुख्य विषय का अंत करते समय उत्तर कि प्रतीक्षा में, सधन्यवाद, शेष कुशल आदि का प्रयोग किया जाना चाहिए।

7.     इसके बाद पत्र के अंतिम भाग में भवदीय, आपका आभारी, आपका आज्ञाकारीइत्यादि शब्द लिखे जाने चाहिए।

8.     पत्र भेजने वाले का नाम/कंपनी का नाम, पता ,दिनांकलिखते है।

9.     अंत में पत्र लिखने वाले के हस्ताक्षर किए जाते है।


2. अनौपचारिक पत्र (Informal Letter)इन पत्रों के अन्तर्गत उन पत्रों को सम्मिलित किया जाता है, जो अपने प्रियजनों को, मित्रों को तथा सगे- संबंधियों को लिखे जाते है। उदहारण के रूप में पुत्र द्वारा पिता जी को अथवा माता जी को लिखा गया पत्र, भाई-बंधुओ को लिखा जाना वाला, किसी मित्र की सहायता हेतु पत्र, बधाई पत्र, शोक पत्र, सुखद पत्र इत्यादि।

अनौपचारिक पत्र का प्रारूप-

1) सबसे पहले बाई ओर पत्र भेजने वाले का पता” लिखा जाता है।
2)
प्रेषक के पते के नीचे तिथि” लिखी जाती है।
3)
भेजने वाले का केवल नाम नहीं लिखा जाता है। यदि अपने से बड़ों को पत्र लिखा जा रहा है तो, “पूजनीय, आदरणीय, जैसे शब्दों के साथ उनसे संबंध लिखते है। जैसे पूजनीय पिता जी। यदि अपने से किसी छोटे या बराबर के व्यक्ति को पत्र लिख रहे है तो उनके नाम के साथ प्रिय मित्र, बंधुवर इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
4)
इसके बाद पत्र का मुख्य भाग दो अनुच्छेदों में लिखा जाता है।
5)
पत्र के मुख्य भाग की समाप्ति धन्यवाद सहित लिखकर किया जाता है।
6)
अंत में प्रार्थी, या तुम्हारा स्नेही आदि शब्दावली का प्रयोग करके लेखक के हस्ताक्षर किए जाते है।



औपचारिक तथा अनौपचारिक पत्रों में अंतर

औपचारिक पत्र

अनौपचारिक पत्र

1. औपचारिक पत्रों को सरकारी सूचनाओं तथा संदेशों के प्रेषण में शामिल किया जाता है।

1. अनौपचारिक पत्रों को परिवारिक, निजी सगे संबंधियों, मित्रों आदि को लिखा जाता है।

2. अनौपचारिक पत्रों के अन्तर्गत शिष्ट भाषा का प्रयोग किया जाता है।

2. अनौपचारिक पत्रों के अन्तर्गत प्रेम, स्नेह, दया, सहानुभूति आदि भावनाओं से परिपूर्ण भाषा का प्रयोग किया जाता है।

3. इन पत्रों का व्यापारिक जगत में विशेष महत्व होता है।

3. अनौपचारिक पत्रों का व्यापारिक जगत में कोई उपयोग नहीं होता है।

4. औपचारिक पत्रों को लिखने का एक औपचारिक उद्देश्य होना आवश्यक होता है।

4. अनौपचारिक पत्रों को लिखने का कोई मुख्य उद्देश्य नहीं होता है।

5. औपचारिक पत्रों में मुख्य विषय को मुख्यता तीन अनुच्छेदों में विभाजित किया जाता है।

5. अनौपचारिक पत्रों के मुख्य विषय को अधिकतम दो अनुच्छेदों में विभाजित किया जाता है।

6. औपचारिक पत्रों को स्पष्टता से लिखा जाता है जिससे किसी सूचना या कार्य में बाधा अथवा संशय उत्पन्न ना हो सके।

6. अनौपचारिक पत्रों भावात्मक रूप से लिखे जाते है।

अनौपचारिक पत्रों को लिखने के उद्देश्य

1.     अनौपचारिक पत्रों को लिखने का मुख्य उद्देश्य अपने परिवारजनों को, प्रियजनों को, सगे संबंधियों को, मित्रजनों आदि को निजी संदेश भेजना है।

2.     किसी निजी जन को बधाई देने हेतु, शोक सूचना देने हेतु, विवाह, जन्मदिवस पर आमंत्रित करने हेतु, आदि के लिए इन्हीं पत्रों का प्रयोग किया जाता है।

3.     हर्ष, दुःख, उत्साह, क्रोध, नाराज़गी, सलाह, सहानुभूति इत्यादि भावनाओं को अनौपचारिक पत्र के माध्यम से व्यक्त करना।

4.     समस्त अनौपचारिक कार्यों के लिए अनौपचारिक पत्रों का प्रयोग किया जाता है।

औपचारिक पत्रों को लिखने के लिए कौन- कौन से तत्व आवश्यक है?

1.     मौलिकता- पत्र की भाषा पूर्ण मौलिक होनी चाहिए। पत्र सदैव उद्देश्य के अनुरूप लिखा होना चाहिए।

2.     संक्षिप्तता आधुनिक युग में समय अत्यंत कीमती है। औपचारिक पत्र के लिए आवश्यक है कि मुख्य विषय को संक्षिप्त में परंतु पूर्ण रूप से लिखा जाए।

3.     योजनाबद्ध- पत्र लिखने से पूर्व पत्र के सबंध में योजना बनाना आवश्यक होता है। बिना योजना के पत्र का प्रारंभ व अंत अनुकूल रूप से नहीं हो पाता है।

4.     पूर्णता- पत्र को लिखते समय समय पूर्णता का ध्यान रखना भी जरूरी है। पत्र में समस्त बातें लिखने के बाद, महत्वपूर्ण दस्तावेजों को संलग्न करना चाहिए। अतः संपूर्ण पत्र पर विचार मंथन कर ही पत्र लिखना प्रारंभ करना चाहिए।

5.     आकर्षक- पत्र को आकर्षक करने का तत्व पाठक को अत्यंत प्रभावित करता है। पत्र पढ़ने व देखने में सुंदर व आकर्षक होना चाहिए। पत्र अच्छे कागज पर सुंदर ढंग से टाइप किया जाना चाहिए।